Friday, June 23, 2017

सार-गर्भ श्रीगीता (श्रीगीता पोथी); अध्याय बारावा – भक्ति योग

सार-गर्भ श्रीगीता (श्रीगीता पोथी)
रचयिता : श्रीराम बाळकृष्ण आठवले

अध्याय बारावा – भक्ति योग

श्रीगणेशाय नमः

ॐ नमस्ते गौरीकुमरा। भक्तियोग तुम्ही विवरा।
बालकाचा हात धरा। चालवाया ॥ १ ॥
मानवी रूपी दिसतो हरी। अव्यक्तही कळला हरी।
उपासना परि कुठली बरी? प्रश्न पार्था ॥ २ ॥
हास्य कृष्णाचे मनोहर।  अर्जुना, उत्तर अवधार।
जिज्ञासा तव सुखकर। सांगतो मी ॥ ३ ॥
दोन्ही उपासना रुचती। मूर्तिपूजक बहु आवडती।
भक्ति करुन योगी बनती। उत्साही ते ॥ ४ ॥
अदृश्याचे ध्यान कठिण। एकाग्र मन दुर्लभ जाण।
इतके कष्ट करी कवण। परमार्थी ॥ ५ ॥
भक्त हवा कर्मयोगी। भक्त हवा ज्ञानयोगी।
भक्त हवा ध्यानयोगी। सामाजिक ॥ ६ ॥
कर्मफला गौण मानी। नव्हे कधी अभिमानी।
विश्वव्यापी रूप ज्ञानी। ऐसा भक्त ॥ ७ ॥
निजकर्तव्यी तो तत्पर। विश्व मानी अपुले घर।
गेला गेला अहंकार। ऐसा भक्त ॥ ८ ॥
माझी भक्ती करता करता। योगसार ये त्याच्या हाता।
चित्त शुद्ध बघता बघता। योगी भक्त ॥ ९ ॥
शिकता शिकता दोष जाती। सद्गुण तेथे प्रवेश करती।
पुढचे पाउल मार्गावरती। ऐसा भक्त ॥ १० ॥
दया, क्षमा, शांती यांनी। मंडित झाला भक्त ज्ञानी।
मजला पूजा कर्मफुलांनी। ऐसा भक्त ॥ ११ ॥
कोणी वंदा, कोणी निंदा। याचा स्वहिताचा धंदा।
लाभे त्यातच तृप्त सदा। ऐसा भक्त ॥ १२ ॥
सुखदुःखी राही शांत। ईश्वर चिंतन अविश्रांत।
मुरे प्रीती अंगांगात। ऐसा भक्त ॥ १३ ॥
देव येथे देव तेथे। आत जे जे विश्वी ते ते।
विकासाला आतुरते। भाविक मन ॥ १४ ॥
नाम ईश्वराचे गावे। रूप ईश्वराचे ध्यावे।
स्वये ईश्वरच व्हावे।  हीच भक्ती ॥ १५ ॥
मनःशांती योगवृत्ती। कर्मकुशलता योगवृत्ती।
ध्याने लाभे योगवृत्ती। भक्ताला त्या ॥ १६ ॥
विकारांचे विसर्जन। सद्गुणांचे संकलन।
डोळसपणे करी मन। ऐसा भक्त ॥ १७ ॥
जितेंद्रिय मने पूत। सत्कर्मी तो सदा रत।
रात्रंदिन मज ध्यात। ऐसा भक्त ॥ १८ ॥
भक्तियोग देई स्फूर्ती। तोच देई मनःशांती।
अध्यायाची गाण्या महती। कोणाला ये? ॥ १९ ॥
   
॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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